क्या 'वाइब्रेंट गुजरात' ने मोदी के पीएम बनने में मदद की?: नज़रिया
वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट का नौवां संस्करण गुजरात की राजधानी गांधीनगर में शुक्रवार से शुरू हो रहा है.
तीन दिनों तक चलने वाले इस समिट का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इस सिलसिले में वो फिलहाल अभी गुजरात प्रवास पर हैं.
उद्योग जगत को एक मंच पर लाने के लिए अहम माने जाने वाले इस समिट की कथित सफलताओं पर सवाल उठते रहे हैं.
इससे पहले साल 2017 में वाइब्रेंट गुजरात समिट का आयोजन किया गया था.
साल 2003 में शुरू हुए इस समिट को तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिमागी उपज समझा जाता है, जिसे आनंदीबेन पटेल और विजय रुपानी ने भी आगे बढ़ाया.
वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट की वेबसाइट का दावा है कि इस बार आयोजन के लिए 186 से ज़्यादा डेलीगेस्ट्स और 26 हज़ार से ज्यादा कंपनियों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है.
तब से अब तक आठ समिट हो चुके हैं, जिसमें हज़ारों करोड़ों के एमओयू (मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) और निवेश की घोषणा चर्चा का विषय बनते आ रहे हैं.
विश्लेषक इसे कॉर्पोरेट और राजनीति के बीच के तालमेल के रूप में देखते हैं.
न सिर्फ निवेश के दावों के लिहाज से, बल्कि इस समिट से नरेंद्र मोदी ने खुद की छवि भी चमकाने की खूब कोशिश की है.
साल 2002 के दंगों के बाद गुजरात की छवि बिगड़ी थी, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को इसे सुधारने की ज़रूरत महसूस हुई और इसी के बाद वाइब्रेंट गुजरात का आइडिया विकसित हुआ.
साल 2002 के दंगों के बाद उद्योग जगत में नरेंद्र मोदी के लेकर एक असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई थी. हिंसा और बिगड़ते माहौल को लेकर कॉर्पोरेट जगत ने उनकी आलोचना भी की थी.
राज्य की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी धक्का पहुंचा था, जिससे आर्थिक रूप से प्रगतिशील समझे जाने वाले गुजरात में निवेश का माहौल बिगड़ने लगा था.
जिस साल दंगे हुए थे उस साल भी गुजरात ने ब्रिटेन के साथ मिलकर एक समिट आयोजन किया गया था, जो बहुत सफल नहीं साबित हो सका.
इसके बाद नरेंद्र मोदी पर सवाल उठे थे कि क्या उन्होंने दंगों की याद भुलाने के लिए इस समिट का आयोजन किया था, जिसका जवाब न नरेंद्र मोदी के पास था और न ही सरकार के पास.
ब्रिटेन के साथ किए गए समिट में गोबर गैस प्लांट और सोलर प्लांट जैसे प्रोजेक्ट पर एमओयू हुए थे. इसके बाद साल 2003 में समिट का स्वरूप बदल गया और इसे बड़े स्तर पर किए जाने की घोषणा हुई.
साल 2005 में हुए वाइब्रेंट गुजरात समिट को औसत प्रतिक्रिया मिली और 2009 से इसकी भव्यता और भी बढ़ती चली गई.
2011 के वाइब्रेंट समिट को सबसे सफल समझा जाता है.
इस समिट में अंबानी, अडानी और भारती मित्तल जैसे बड़ी उद्योगपतियों ने शिरकत की थी. इन सभी ने उस समिट में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की खूब प्रशंसा की थी और कहा था कि उनमें प्रधानमंत्री बनने की कूबत है.
इस समिट के दौरान एक स्थानीय उद्योगपति ने राज्य के उद्योगपतियों को नजरअंदाज करने का भी आरोप लगाया था . उन्होंने कहा था कि राज्य के लोगों को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए.
तीन दिनों तक चलने वाले इस समिट का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इस सिलसिले में वो फिलहाल अभी गुजरात प्रवास पर हैं.
उद्योग जगत को एक मंच पर लाने के लिए अहम माने जाने वाले इस समिट की कथित सफलताओं पर सवाल उठते रहे हैं.
इससे पहले साल 2017 में वाइब्रेंट गुजरात समिट का आयोजन किया गया था.
साल 2003 में शुरू हुए इस समिट को तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिमागी उपज समझा जाता है, जिसे आनंदीबेन पटेल और विजय रुपानी ने भी आगे बढ़ाया.
वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट की वेबसाइट का दावा है कि इस बार आयोजन के लिए 186 से ज़्यादा डेलीगेस्ट्स और 26 हज़ार से ज्यादा कंपनियों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है.
तब से अब तक आठ समिट हो चुके हैं, जिसमें हज़ारों करोड़ों के एमओयू (मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) और निवेश की घोषणा चर्चा का विषय बनते आ रहे हैं.
विश्लेषक इसे कॉर्पोरेट और राजनीति के बीच के तालमेल के रूप में देखते हैं.
न सिर्फ निवेश के दावों के लिहाज से, बल्कि इस समिट से नरेंद्र मोदी ने खुद की छवि भी चमकाने की खूब कोशिश की है.
साल 2002 के दंगों के बाद गुजरात की छवि बिगड़ी थी, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को इसे सुधारने की ज़रूरत महसूस हुई और इसी के बाद वाइब्रेंट गुजरात का आइडिया विकसित हुआ.
साल 2002 के दंगों के बाद उद्योग जगत में नरेंद्र मोदी के लेकर एक असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई थी. हिंसा और बिगड़ते माहौल को लेकर कॉर्पोरेट जगत ने उनकी आलोचना भी की थी.
राज्य की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी धक्का पहुंचा था, जिससे आर्थिक रूप से प्रगतिशील समझे जाने वाले गुजरात में निवेश का माहौल बिगड़ने लगा था.
जिस साल दंगे हुए थे उस साल भी गुजरात ने ब्रिटेन के साथ मिलकर एक समिट आयोजन किया गया था, जो बहुत सफल नहीं साबित हो सका.
इसके बाद नरेंद्र मोदी पर सवाल उठे थे कि क्या उन्होंने दंगों की याद भुलाने के लिए इस समिट का आयोजन किया था, जिसका जवाब न नरेंद्र मोदी के पास था और न ही सरकार के पास.
ब्रिटेन के साथ किए गए समिट में गोबर गैस प्लांट और सोलर प्लांट जैसे प्रोजेक्ट पर एमओयू हुए थे. इसके बाद साल 2003 में समिट का स्वरूप बदल गया और इसे बड़े स्तर पर किए जाने की घोषणा हुई.
साल 2005 में हुए वाइब्रेंट गुजरात समिट को औसत प्रतिक्रिया मिली और 2009 से इसकी भव्यता और भी बढ़ती चली गई.
2011 के वाइब्रेंट समिट को सबसे सफल समझा जाता है.
इस समिट में अंबानी, अडानी और भारती मित्तल जैसे बड़ी उद्योगपतियों ने शिरकत की थी. इन सभी ने उस समिट में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की खूब प्रशंसा की थी और कहा था कि उनमें प्रधानमंत्री बनने की कूबत है.
इस समिट के दौरान एक स्थानीय उद्योगपति ने राज्य के उद्योगपतियों को नजरअंदाज करने का भी आरोप लगाया था . उन्होंने कहा था कि राज्य के लोगों को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए.
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